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AMD to invest $400 million in India by 2028: Here’s what we know

US chipmaker Advanced Micro Devices said on Friday it will invest around $400 million in India over the next five years and will build its largest design center in the tech hub of Bengaluru. AMD’s announcement was made by its Chief Technology Officer Mark Papermaster at an annual semiconductor conference that started Friday in Prime Minister Narendra Modi’s home state of Gujarat. Other speakers at the flagship event include Foxconn Chairman Young Liu and Micron CEO Sanjay Mehrotra. Despite being a late entrant, the Modi government has been courting investments into India’s nascent chip sector to establish its credentials as a chipmaking hub. AMD said it will open its new design centre campus in Bengaluru by end of this year and create 3,000 new engineering roles within five years. “Our India teams will continue to play a pivotal role in delivering the high-performance and adaptive solutions that support AMD customers worldwide,” Papermaster said. The new 500,000-square-foot (55,5...

एक दुनिया आभास से आगे

प्रेम प्रकाश

2004 के बाद से दुनिया कितनी बदली है, इसका कोई एक जवाब शायद ही हो। पर अगर यह सवाल साइबर तंत्र को सामने रखकर पूछा जाए तो जवाब जरूर हर तरफ से यही होगा कि बदलाव का यह अनुभव अभूतपूर्व है। इस अनुभव का नया सिरा अब जहां खुलने जा रहा है वह कल्पना और तकनीक का एक ऐसा साझा रोमांच है जो आभास और यकीन के बीच तकरीबन एक नई दुनिया होगी। जहां लोग होंगे, संबंधों की गरमाहट होगी और साथ में होगा उपभोग और आनंद का अनंत सफर। ‘मेटावर्स’ नाम से आई इस तकनीक पर विशेष।

कुछ साल पहले जो फेसबुक पूरी दुनिया में अपने वर्चस्ववादी रवैए के कारण ‘नेट न्यूट्रिलिटी’ की बहस के निशाने पर था, आज वह अभासी संसार को वास्तविकता के अहसास से भरने के तकनीकी पराक्रम को अपना भविष्य और रणनीति एक साथ घोषित कर रहा है। कमाल यह कि बाजार के खुले दरवाजे के साथ नई दुनिया को लेकर जो समझ हमें तीन दशक पीछे ले जाती है, मार्क जुकरबर्ग उस दुनिया में 2004 में दाखिल होते हैं। उनका यह दाखिला आज एक बड़े दखल में बदल चुका है।

यह दखल एक तरफ जहां कई गणतंत्रों को अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बारे में फिक्रमंद कर रही है, वहीं यह खतरा भी है कि व्यक्ति की राष्ट्र तक की यात्रा के सारे पड़ाव आज इतिहास और संस्कृति के हाथों से निकलते जा रहे हैं। संबंध और सरोकार से लेकर वित्तीय व्यवहार की हमारी आजादी तकरीबन स्थगित हो चुकी है। इस आजादी पर साइबरी सूरमाओं का हस्तक्षेप हावी ही नहीं है बल्कि यह उनकी मंशा और शातिर निगरानी के हवाले है।
उपन्यास से शुरू हुई बात
बहरहाल, बात उस ई-बदलाव की जिसकी चर्चा आज हर तरफ है। 1992 में नील स्टीफेंसन का उपन्यास आया था- ‘स्नो क्रैश’। यह विज्ञान कथा (साइंस फिक्शन) का नया औपन्यासिक विस्तार था। नील ने इस उपन्यास में एक शब्द गढ़ा- मेटा। यह शब्द नया नहीं है पर नील इसका नया संदर्भ और आशय लेकर आए। यह संदर्भ और आशय आज साइबरी तकनीक का एक साथ नया भाष्य, स्वरूप और गंतव्य बनने जा रहा है। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने हाल में ही एलान किया कि वे अपनी कंपनी का नाम बदलकर मेटा प्लेटफार्म्स इंक या छोटे में कहें तो ‘मेटा’ रख रहे हैं।
सच का नया आभास
दिलचस्प है कि फ्लापी, सीडी रोम और ‘सी++’ से शुरू हुआ तकनीक का सफर आज इतना आगे निकल चुका है कि हमारी आंखों के आगे ऐसी दुनिया साकार हो रही है जो आभासी से बहुत आगे और वास्तविकता के करीब है। यह तकरीबन वैसा ही है जिसमें आपको यह अहसास होगा कि इंटरनेट की दुनिया जिंदगी के वास्तविक अहसास से भरने जा रही है। जो कुछ भी ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ में स्क्रीन के पीछे हो रहा है, वह अब आप अपने साथ, अपने आसपास महसूस करेंगे। अब आप स्क्रीन को देखेंगे नहीं, बल्कि उसके भीतर प्रवेश कर जाएंगे। मसलन, आप वीडियो काल करते हैं तो मेटावर्स में आप वीडियो काल के अंदर होंगे। आप सिर्फ बातचीत के दौरान एक-दूसरे को देखेंगे ही नहीं, घर, दफ्तर या जहां कहीं भी हों, वहां अपने साथी के साथ आभासी रूप में मौजूद भी होंगे। इसके साथ संपर्क, संबंध और अहसास का रोमांच शुरू होगा जो तकरीबन अनंत होगा।

जुकरबर्ग ने कंपनी के नए नाम के एलान के दौरान कहा, ‘हमने सामाजिक मुद्दों से जूझने और काफी करीबी प्लेटफार्म पर एक साथ रहते हुए बहुत कुछ सीखा है और अब समय आ गया है कि हमने जो कुछ भी सीखा है उसके अनुभव से एक नए अध्याय की शुरुआत करें। मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि आज से हमारी कंपनी अब मेटा है। हमारा मिशन वही है। हमारे ऐप्स और ब्रांड के नाम नहीं बदल रहे हैं। आज हम एक सोशल मीडिया कंपनी के नाम से जाने जाते हैं, लेकिन डीएनए के हिसाब से हम एक ऐसी कंपनी हैं जो लोगों को जोड़ने वाली तकनीक विकसित करती हैं।’ अपनी इस योजना के साथ फेसबुक ने दस हजार नए कर्मचारियों को अपने साथ जोड़ने घोषणा भी की है। इस तकनीक पर वह 50 मिलियन डालर निवेश करने जा रही है।
होड़ में सब शामिल
माइक्रोसाफ्ट और निविडिया जैसे कई और कंपनियां मेटावर्स पर पहले से काम कर रही हैं। निविडिया आम्नीवर्स के उपाध्यक्ष रिचर्ड केरिस कहते हैं, ‘हमें लगता है कि बहुत सी कंपनियां मेटावर्स में अपनी-अपनी आभासी दुनिया बना रही हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे बहुत सी कंपनियों ने वर्ल्ड वाइड वेब में अपनी-अपनी वेबसाइट बनाई हैं। सुगम होना और विस्तार की संभावनाएं खुली रखना जरूरी है ताकि आप एक से दूसरी दुनिया में आ-जा सकें फिर वे चाहे किसी भी कंपनी की हों।

ठीक वैसे ही जैसे आप एक वेबसाइट से दूसरी वेबसाइट पर जाते हैं।’ फैशन की दुनिया भी मेटावर्स को अपना रही है। इटली के फैशन ब्रांड गुची ने जून में रोब्लाक्स के साथ एक साझीदारी की और सिर्फ डिजिल एक्ससेसरी बेचने की योजना बनाई है। कोका-कोला और ‘क्लीनिके ने मेटावर्स के लिए डिजिटल टोकन बेचे हैं। हाल में फोर्टनाइट ने गायिका एरियाना ग्रांड का लाइव कान्सर्ट रखा था।
रोमांच के साथ चिंता भी
कह सकते हैं कि मेटावर्स यानी तरंगीय तकनीक से जुड़ी संभावना का अनंत। इस शब्द और इससे जुड़ी तकनीक के जादू पर लट्टू सिर्फ जुकरबर्ग नहीं हैं। दुनियाभर की तकनीकी कंपनियां इस समय मेटावर्स की तरफ तेजी से बढ़ रही हैं, इसी में वे अपना भविष्य खोज रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भविष्य का इंटरनेट है। अलबत्ता इस तकनीक को लेकर जितना कौतुहल है, उतनी ही चिंताएं भी हैं। एक चिंता तो यही कि इस तकनीक के जरिए इतना निजी डेटा टेक कंपनियों तक पहुंच जाएगा कि निजता की सीमा पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी।

युवाल नोवा हरारी पहले ही कह चुके हैं कि हम निजी पसंद और स्वतंत्रता (फ्रीलांस) के दौर से आगे निकल चुके हैं। नया दौर ‘सर्विलांस’ का है। हमारी नजर कहां तक है यह अब गौण तथ्य है। अहम सच्चाई यह है कि हम पर असंख्य अदृश्य नजरों की निगरानी है। सब की सब अपलक और चौकन्नी। जाहिर है कि ऐसे में तय करने और होने का हर अख्तियार अब इंसानी जद से बाहर होगा।

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